Diwali Pe Safai Ka Aatank दिवाली का त्योहार रोशनी, मिठाई और खुशियों का प्रतीक होता है। लेकिन जब भी यह त्योहार नजदीक आता है, घर के एक कोने में छिपा हुआ एक और आतंक सामने आता है—सफाई का आतंक! हां, आप सही समझे, दिवाली की सफाई जो घर के हर सदस्य को किसी न किसी रूप में प्रभावित करती है। खासकर मां की डांट से बचने की जद्दोजहद में सब फंस जाते हैं।
दिवाली की सफाई: एक वार्षिक रस्म
दिवाली से पहले हर भारतीय घर में सफाई एक जरूरी रस्म होती है। पुरानी कहावत के अनुसार, “मां लक्ष्मी वहीं आती हैं जहां सफाई होती है,” और इसी कारण से घर की सफाई करना लगभग धार्मिक जिम्मेदारी मानी जाती है। लेकिन क्या ये सफाई किसी छोटी सी जिम्मेदारी से कम होती है? नहीं, बिल्कुल नहीं!
घर की मां, जिसे हम सुनीता कहेंगे, इस समय पूरे परिवार के लिए एक प्रमुख अधिकारी बन जाती हैं। उनका एक ही मिशन होता है—घर के हर कोने को चमकाना। और जो इस सफाई अभियान से बचने की कोशिश करता है, उसे सुनीता की डांट का सामना करना पड़ता है।
परिवार के सदस्य और उनके बहाने
हर परिवार के सदस्य की अपनी अलग ही रणनीति होती है, ताकि वे सफाई के आतंक से बच सकें।
- राहुल (Rahul): राहुल, जो कि घर का सबसे बड़ा बेटा है, अक्सर काम से भागने के लिए अपने ऑफिस वर्क का बहाना बनाता है। “मां, अभी बहुत जरूरी मीटिंग है, थोड़ी देर में आऊंगा,” यह उसका हमेशा का डायलॉग होता है। लेकिन मां को बहाने समझ में आते हैं और राहुल को खींचकर सफाई में लगा दिया जाता है।
- नेहा (Neha): नेहा, घर की बेटी, ने ब्यूटी पार्लर का अपॉइंटमेंट पहले से ही बुक कर रखा है। जब मां कहती है, “नेहा, कमरे की सफाई कर दो,” तो नेहा कहती है, “मां, प्लीज! मुझे पार्लर जाना है, नहीं तो फेस खराब लगने लगेगा।” लेकिन सुनीता का जवाब होता है, “तुम्हारा फेस बाद में चमकाना, पहले ये कमरा चमकाओ!”
- रोहन (Rohan): रोहन, जो कि घर का छोटा बेटा है, वीडियो गेम्स का दीवाना है। जैसे ही मां कहती है, “रोहन, बिस्तर के नीचे की गंदगी साफ कर दो,” वह तुरंत कंट्रोलर लेकर बैठ जाता है और जवाब देता है, “मां, अभी गेम का लेवल क्रिटिकल है, थोड़ा इंतजार करो।” पर सुनीता बिना किसी देरी के गेम बंद करवा देती है।
- पापा (Rajesh): घर के पिता, जिन्हें हम राजेश कहेंगे, सफाई से बचने के लिए सबसे चतुर बहाना अपनाते हैं—अचानक से अखबार लेकर बैठ जाते हैं या फिर टीवी पर कोई महत्वपूर्ण न्यूज़ देखने लगते हैं। लेकिन सुनीता का गुस्सा पापा पर भी भारी पड़ता है, “ये अखबार बाद में पढ़ लेना, पहले फ्रिज के ऊपर का सामान साफ करो।”
मां की डांट: हर घर की कहानी
दिवाली के समय सुनीता की डांट का कोई मुकाबला नहीं। हर काम को परफेक्शन के साथ करवाना, ये उनका सबसे बड़ा उद्देश्य होता है। अगर कोई काम ठीक से नहीं होता, तो फिर गुस्से का सामना करना पड़ता है। राहुल, नेहा, रोहन और राजेश, सब इस समय में एक ही सवाल करते हैं: “आखिर कब यह सफाई खत्म होगी?” पर सुनीता का एक ही जवाब होता है, “जब तक पूरा घर चमक नहीं जाएगा!”
हर कोई जानता है कि दिवाली की सफाई के दौरान मां की डांट से बचना नामुमकिन है। चाहे कितनी भी कोशिश कर लें, मां को घर का हर कोना साफ चाहिए होता है। और मां का यह रूप देखकर हर कोई सफाई में जुट जाता है।
दिवाली का असली मतलब: सफाई के बाद की शांति
हालांकि सफाई के दौरान हर किसी को मां की डांट सुननी पड़ती है, लेकिन सफाई खत्म होने के बाद घर में जो शांति और सुंदरता होती है, वो दिवाली का असली आनंद लाती है। जब घर साफ हो जाता है, तो घर की रोशनी और सजावट का असली मतलब समझ में आता है।
फिर मां, यानि सुनीता, भी एक बार मुस्कुराकर कहती है, “अब सब हो गया, चलो अब मिठाई और पटाखों की तैयारी करो।” तब जाकर हर सदस्य को राहत मिलती है कि अब मां की डांट से बच गए।
आखिर में कौन बचा?
तो क्या कोई मां की डांट से बच पाया? बिल्कुल नहीं! दिवाली की सफाई एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें हर किसी को भाग लेना पड़ता है। हां, एक बात जरूर है कि सफाई के बाद घर के हर सदस्य को मां की तारीफ मिलती है, “अच्छा किया, अब घर सच में दिवाली के लायक लग रहा है।”
सफाई का आतंक जितना भी बड़ा हो, दिवाली के दिन सबकुछ भूलकर परिवार एक साथ बैठता है और त्योहार की खुशियां मनाता है। सुनीता, राहुल, नेहा, रोहन, और राजेश, सब साथ मिलकर पूजा करते हैं और इस बात पर हंसते हैं कि किसने सफाई के दौरान कितनी मेहनत की और किसने कितनी बार मां से डांट खाई।
निष्कर्ष
दिवाली की सफाई भले ही सबको परेशान करती हो, लेकिन यह घर की एकता और मां के प्यार का अनोखा प्रतीक है। सफाई के बाद घर जितना चमकता है, उतना ही दिलों में खुशियों की रोशनी फैलती है। आखिरकार, मां की डांट भी एक तरह का प्यार ही तो है, जो घर को सबसे सुंदर और सुरक्षित बनाने के लिए होती है।
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