मध्य पूर्व एक बार फिर तनाव के चरम पर है। ईरान और Israel के बीच छिड़ी 72 घंटे की जंग ने न केवल क्षेत्रीय स्थिरता को चुनौती दी है, बल्कि वैश्विक राजनीति को भी प्रभावित किया है। इस बार मामला इसलिए भी अधिक गंभीर है क्योंकि हमला 2300 किलोमीटर की दूरी से हुआ, जो सैन्य क्षमताओं और रणनीतियों के लिहाज से बेहद अहम माना जा रहा है। इस लेख में हम इस संघर्ष की पूरी पृष्ठभूमि, घटनाक्रम, हताहतों की संख्या, दोनों देशों को हुए नुकसान और इसके वैश्विक प्रभावों की गहराई से पड़ताल करेंगे।
संघर्ष की पृष्ठभूमि
ईरान-Israel संबंध: एक पुराना तनाव
ईरान और इज़राइल के बीच संबंध दशकों से तनावपूर्ण रहे हैं। ईरान की इस्लामिक क्रांति (1979) के बाद से ही इज़राइल को लेकर तेहरान की नीति आक्रामक रही है। वहीं इज़राइल भी ईरान की परमाणु गतिविधियों को लेकर चिंतित रहा है। सीरिया, लेबनान और गाजा जैसे इलाकों में दोनों देशों ने प्रॉक्सी वॉर भी लड़ी है।
हालिया घटनाक्रम
हाल ही में इज़राइल द्वारा सीरिया में एक ईरानी कंसुलर भवन पर किए गए हमले के बाद तनाव चरम पर पहुंच गया। जवाब में, ईरान ने 2300 किलोमीटर दूर से इज़राइल पर मिसाइल और ड्रोन हमला किया। इसके बाद 72 घंटे तक चली सीधी भिड़ंत ने युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न कर दी।
72 घंटे की जंग: घटनाओं का क्रम
पहला दिन: हमला शुरू
ईरान ने पहले दिन रात के अंधेरे में सैकड़ों ड्रोन और मिसाइलों से हमला किया। इज़राइली डिफेंस सिस्टम (Iron Dome) ने अधिकांश मिसाइलों को मार गिराया, लेकिन कुछ निशाने तक पहुंचीं। इस हमले में इज़राइल के 16 नागरिकों की जान गई और दर्जनों घायल हुए।
दूसरा दिन: जवाबी कार्रवाई
इज़राइल ने जवाबी कार्रवाई करते हुए ईरान के कई सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया। विशेषकर खोर्रमशहर, ईशफहान और क़ुम में बड़े हमले हुए। इन हमलों में ईरान को भारी नुकसान हुआ। रिपोर्ट्स के अनुसार, लगभग 406 लोगों की मौत हुई जिनमें सेना के जवान और आम नागरिक दोनों शामिल थे।
तीसरा दिन: वैश्विक प्रतिक्रिया और राजनयिक प्रयास
तीसरे दिन अमेरिका, रूस, चीन और संयुक्त राष्ट्र की सक्रियता बढ़ी। दोनों देशों पर दबाव डाला गया कि वे संघर्ष को यहीं समाप्त करें। अंततः कूटनीतिक प्रयासों के चलते संघर्ष को विराम मिला, लेकिन तनाव पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है।
किसे कितना नुकसान हुआ?
ईरान को हुआ नुकसान
- मानव हानि: 406 मौतें (संभावित संख्या)
- सैन्य ठिकानों का नाश: 20+ ठिकाने पूरी तरह नष्ट
- आर्थिक नुकसान: अनुमानतः $3 बिलियन से अधिक
- राजनीतिक असर: घरेलू असंतोष में वृद्धि
इज़राइल को हुआ नुकसान
- मानव हानि: 16 नागरिकों की मौत
- ड्रोन और मिसाइल हमलों से क्षति: कुछ इन्फ्रास्ट्रक्चर को नुकसान
- सैन्य व्यय: $1 बिलियन से अधिक का खर्च
- सुरक्षा पर असर: सीमाओं की सख्ती और सेना की तैनाती में इजाफा
वैश्विक प्रतिक्रिया
अमेरिका
अमेरिका ने इज़राइल के समर्थन में बयान दिया लेकिन साथ ही ईरान से संयम बरतने की अपील की। अमेरिकी राष्ट्रपति ने दोनों देशों से युद्ध न बढ़ाने की चेतावनी दी।
संयुक्त राष्ट्र
संयुक्त राष्ट्र ने आपात बैठक बुलाई और संघर्ष विराम की मांग की।
भारत
भारत ने दोनों पक्षों से संयम बरतने का आग्रह किया और कहा कि क्षेत्रीय शांति सबसे महत्वपूर्ण है।
रूस और चीन
दोनों देशों ने कूटनीतिक हल निकालने की वकालत की और संघर्ष में और वृद्धि न होने की अपील की।
युद्ध के पीछे की तकनीक
2300 किलोमीटर की रेंज: क्या है इसकी अहमियत?
ईरान ने जो मिसाइलें इस्तेमाल कीं, उनकी रेंज 2000 से 2500 किलोमीटर तक है। यह दर्शाता है कि ईरान अब रणनीतिक रूप से काफी आगे बढ़ चुका है और इज़राइल जैसे दूरस्थ लक्ष्य को भी सटीकता से निशाना बना सकता है।
ड्रोन हमले
ईरान ने सुसज्जित ड्रोन का इस्तेमाल किया जो कि कम लागत में अधिक नुकसान पहुंचा सकते हैं। इन ड्रोन की सटीकता और गति ने इज़राइल को सतर्क कर दिया है।
भविष्य की संभावना
क्या होगा अगला कदम?
यद्यपि संघर्ष थम गया है, पर क्षेत्रीय तनाव बरकरार है। अगर कोई नई उकसाने वाली घटना होती है, तो दोनों देश फिर से आमने-सामने आ सकते हैं। इसके अलावा, अमेरिका और पश्चिमी देशों की भूमिका आगे निर्णायक हो सकती है।
शांति की राह
संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों को अब मध्यस्थ की भूमिका निभानी होगी ताकि इस तरह के संघर्षों को रोका जा सके। साथ ही, संवाद और डिप्लोमेसी को बढ़ावा देना होगा।
निष्कर्ष
2300 किलोमीटर दूर से हुआ यह हमला केवल सैन्य शक्ति का प्रदर्शन नहीं था, बल्कि यह वैश्विक राजनीति के समीकरणों को भी प्रभावित करने वाला कदम था। इस 72 घंटे की जंग ने साबित कर दिया कि अब युद्ध केवल सीमाओं तक सीमित नहीं रहे, बल्कि तकनीक और रणनीति के माध्यम से दूर-दराज के इलाकों में भी तबाही मचाई जा सकती है। ईरान और इज़राइल दोनों को हुए नुकसान इस बात का संकेत हैं कि युद्ध में कोई भी पक्ष विजेता नहीं होता। शांति और संवाद ही स्थाई समाधान हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
1. इस संघर्ष की शुरुआत किसने की?
संघर्ष की शुरुआत ईरान द्वारा 2300 किलोमीटर दूर से किए गए मिसाइल और ड्रोन हमलों से हुई, जो इज़राइल के सीरिया स्थित कांसुलेट पर हुए हमले के जवाब में था।
2. ईरान और इज़राइल के बीच तनाव का मुख्य कारण क्या है?
मुख्य कारण हैं: धार्मिक वैचारिक मतभेद, ईरान की परमाणु गतिविधियाँ और प्रॉक्सी वॉर्स।
3. इस संघर्ष में अन्य कौन-कौन से देश शामिल हुए?
प्रत्यक्ष रूप से कोई अन्य देश शामिल नहीं हुआ, लेकिन अमेरिका, रूस, चीन और भारत ने कूटनीतिक प्रतिक्रियाएं दीं।
4. क्या यह संघर्ष भविष्य में बड़े युद्ध का संकेत है?
संभावना है, लेकिन वैश्विक दबाव और कूटनीतिक प्रयासों से फिलहाल यह एक पूर्ण युद्ध में नहीं बदला।
5. 2300 किलोमीटर दूर से हमला करना तकनीकी रूप से कितना मुश्किल है?
यह बेहद कठिन होता है, लेकिन ईरान की मिसाइल तकनीक में आई प्रगति ने इसे संभव बना दिया है। इससे उसकी रणनीतिक क्षमता में वृद्धि हुई है।