Netanyahu हाल ही में हुए संघर्ष में ईरान को सैन्य दृष्टिकोण से हार का सामना करना पड़ा, लेकिन इसके बावजूद देशभर में जश्न का माहौल देखने को मिला। यह दृश्य पाकिस्तान की पुरानी रणनीति की याद दिलाता है, जहां वास्तविकता कुछ और होती है लेकिन नैरेटिव कुछ और प्रस्तुत किया जाता है। दूसरी ओर, इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जो इस संघर्ष के विजेता माने जा रहे हैं, अब अंतरराष्ट्रीय सवालों और आलोचनाओं के घेरे में हैं।
ईरान की हार और अंदरूनी नैरेटिव : Netanyahu
युद्ध की पृष्ठभूमि
संघर्ष की शुरुआत एक सीमावर्ती हमले से हुई थी जिसमें इजरायली बलों ने ईरानी सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया। यह हमले उच्च-स्तरीय खुफिया जानकारी के आधार पर किए गए और इसमें ईरान को भारी नुकसान उठाना पड़ा।
जश्न का कारण क्या है?
ऐसे समय में जब देश के सैन्य संसाधन क्षीण हो रहे हैं और कई सैनिकों की जान गई, ईरानी जनता के एक हिस्से द्वारा जश्न मनाना हैरानीजनक है। जानकारों के अनुसार, यह एक रणनीतिक नैरेटिव है जिसे सरकार ने बढ़ावा दिया ताकि जनता का ध्यान वास्तविक पराजय से हटाया जा सके।
पाकिस्तान से तुलना क्यों?
पाकिस्तान भी कई बार ऐसे पराजयों को “रणनीतिक जीत” बताकर जश्न मनाता रहा है। मीडिया कंट्रोल और धार्मिक भावनाओं को भड़काकर जनता को यह यकीन दिलाया जाता है कि नैतिक जीत उनकी ही हुई है। ईरान की रणनीति भी इस तरह की प्रतीत होती है।
नेतन्याहू और ट्रंप पर उठते सवाल
नेतन्याहू की भूमिका
इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू इस युद्ध में एक निर्णायक नेतृत्वकर्ता के रूप में सामने आए। हालांकि उन्होंने इजरायली सैन्य शक्ति का पूरी तरह उपयोग कर संघर्ष को जल्दी समाप्त किया, परंतु अब उन पर यह आरोप लग रहे हैं कि उन्होंने यह युद्ध आंतरिक राजनीतिक दबावों से ध्यान हटाने के लिए शुरू किया।
ट्रंप का समर्थन और दबाव
डोनाल्ड ट्रंप, जो इस समय अमेरिकी चुनावों की दौड़ में हैं, ने खुलकर इजरायल का समर्थन किया। हालांकि, कई अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप ने इस टकराव का फायदा अपनी राजनीतिक छवि सुधारने के लिए किया। साथ ही, उन्होंने इस संघर्ष के दौरान सैन्य सहायता और हथियारों की आपूर्ति के आदेश भी दिए थे।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ ने इस संघर्ष की जांच की मांग की है। उनका मानना है कि नेतन्याहू और ट्रंप दोनों ने इस युद्ध को अपनी राजनीतिक लाभ के लिए प्रयोग किया है, और इसमें मानवाधिकारों की अनदेखी की गई।
मीडिया नैरेटिव और जनभावना
ईरान का सरकारी प्रचार तंत्र
ईरान के सरकारी मीडिया ने इस संघर्ष को “धार्मिक विजय” और “वैचारिक स्थिरता की जीत” के रूप में प्रस्तुत किया। टीवी चैनलों पर विजयी नारों और धार्मिक गीतों के साथ जश्न दिखाए गए, जिससे आम जनता को यह यकीन दिलाया गया कि उन्होंने अपनी अस्मिता की रक्षा की है।
सोशल मीडिया और सच्चाई
हालांकि स्वतंत्र सोशल मीडिया चैनलों और एक्टिविस्ट्स ने जमीनी सच्चाई उजागर की। उन्होंने तस्वीरों और वीडियो के जरिए यह दिखाया कि ईरान को भारी सैन्य क्षति हुई और नागरिकों की स्थिति भी बेहद दयनीय हो गई।
इजरायली और अमेरिकी मीडिया
इजरायली और अमेरिकी मीडिया में भी दो मत देखने को मिले। कुछ चैनल्स ने इसे एक रणनीतिक जीत बताया, जबकि कई अन्य पत्रकारों और विश्लेषकों ने इसे अनावश्यक रक्तपात कहा और नेतन्याहू तथा ट्रंप की आलोचना की।
भू-राजनीतिक प्रभाव
मध्य-पूर्व में अस्थिरता
इस युद्ध के चलते मध्य-पूर्व में एक बार फिर अस्थिरता बढ़ गई है। यमन, सीरिया और लेबनान जैसे देशों में तनाव की स्थिति और बढ़ गई है, जहां पहले से ही ईरान समर्थित गुट सक्रिय हैं।
वैश्विक स्तर पर बदलाव
अमेरिका और इजरायल की छवि अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रभावित हुई है। कई मानवाधिकार संगठनों और देशों ने इस युद्ध के खिलाफ बयान जारी किए हैं।
भारत का संतुलन
भारत ने अब तक इस मुद्दे पर संयम बरता है, लेकिन उसने दोनों पक्षों से संयम और शांति की अपील की है। भारत के लिए यह स्थिति आर्थिक और रणनीतिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील है।
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निष्कर्ष
इस संघर्ष ने यह स्पष्ट कर दिया कि सैन्य जीत और नैरेटिव की जीत में बड़ा फर्क होता है। ईरान ने भले ही युद्ध में हार झेली हो, लेकिन उसने आंतरिक नैरेटिव और जनता की सोच को नियंत्रण में रखकर एक वैचारिक विजय का आभास जरूर दिया। दूसरी ओर नेतन्याहू और ट्रंप, जिनकी भूमिका इस युद्ध में निर्णायक रही, अब वैश्विक जांच और आलोचनाओं के केंद्र में हैं।
पूछे जाने वाले प्रश्न
1. क्या ईरान सच में युद्ध जीत गया?
नहीं, सैन्य दृष्टि से ईरान को भारी नुकसान हुआ है, लेकिन आंतरिक नैरेटिव के माध्यम से इसे वैचारिक जीत में बदला गया है।
2. पाकिस्तान से ईरान की तुलना क्यों की जा रही है?
क्योंकि दोनों ही देश युद्ध में हार के बावजूद अपने-अपने देश में जश्न मनाने की रणनीति अपनाते हैं और नैरेटिव को नियंत्रित करते हैं।
3. नेतन्याहू पर क्या आरोप लगे हैं?
नेतन्याहू पर यह आरोप है कि उन्होंने आंतरिक राजनीतिक दबावों से ध्यान हटाने के लिए यह युद्ध छेड़ा।
4. ट्रंप की भूमिका क्या रही?
ट्रंप ने इजरायल को समर्थन दिया और सैन्य सहायता भी भेजी, जिससे उनकी भूमिका भी संदेह के घेरे में है।
5. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्या प्रतिक्रिया रही?
संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ ने इस युद्ध की आलोचना की और मानवाधिकार हनन की जांच की मांग की है।