जब अमेरिकी कोर्ट में टैरिफ पर सुनवाई चल रही थी, तो ट्रंप प्रशासन ने भारत-पाकिस्तान Ceasefire का ज़िक्र क्यों किया?

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मई 2025 में, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए व्यापक “लिबरेशन डे” टैरिफ को अमेरिकी अंतर्राष्ट्रीय व्यापार न्यायालय ने अवैध घोषित कर दिया। इस सुनवाई के दौरान, ट्रंप प्रशासन ने एक अप्रत्याशित तर्क प्रस्तुत किया: यदि राष्ट्रपति की व्यापारिक शक्तियों को सीमित किया गया, तो इससे भारत और पाकिस्तान के बीच हाल ही में हुए संघर्ष के बाद स्थापित Ceasefire को खतरा हो सकता है। यह तर्क न केवल कानूनी बहस का विषय बना, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति और व्यापार नीति के बीच के जटिल संबंधों को भी उजागर करता है।

ट्रंप के “लिबरेशन डे” टैरिफ और कानूनी चुनौती : Ceasefire

टैरिफ की घोषणा

2 अप्रैल 2025 को, राष्ट्रपति ट्रंप ने “लिबरेशन डे” के अवसर पर एक व्यापक टैरिफ योजना की घोषणा की, जिसमें लगभग सभी आयातों पर न्यूनतम 10% और कुछ मामलों में 145% तक की दरें लागू की गईं। इस योजना का उद्देश्य अमेरिका के व्यापार घाटे को कम करना और विदेशी व्यापारिक प्रथाओं का मुकाबला करना था।

कानूनी चुनौती और निर्णय

इस टैरिफ योजना को “V.O.S. Selections, Inc. v. United States” मामले में चुनौती दी गई। 28 मई 2025 को, अमेरिकी अंतर्राष्ट्रीय व्यापार न्यायालय ने फैसला सुनाया कि ट्रंप ने अंतर्राष्ट्रीय आपातकालीन आर्थिक शक्तियाँ अधिनियम (IEEPA) के तहत अपनी शक्तियों का अतिक्रमण किया है, और इस टैरिफ योजना को अवैध घोषित किया।

भारत-पाकिस्तान संघर्ष और अमेरिका की भूमिका

संघर्ष की पृष्ठभूमि

अप्रैल 2025 में, जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ गया। दोनों देशों के बीच सीमित सैन्य झड़पें हुईं, जिससे क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता पर खतरा मंडराने लगा।

अमेरिका की मध्यस्थता

10 मई 2025 को, अमेरिका के हस्तक्षेप से दोनों देशों के बीच एक नाजुक सीज़फायर स्थापित हुआ। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने पाकिस्तान के सेना प्रमुख और प्रधानमंत्री से संपर्क किया, जबकि उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस ने भारतीय अधिकारियों से बातचीत की। इस कूटनीतिक प्रयास के परिणामस्वरूप, दोनों देशों ने शाम 5:00 बजे (IST) से युद्धविराम लागू करने पर सहमति व्यक्त की।

ट्रंप प्रशासन का तर्क: व्यापारिक शक्तियाँ और कूटनीति

व्यापार को कूटनीतिक उपकरण के रूप में प्रस्तुत करना

ट्रंप प्रशासन ने अदालत में तर्क दिया कि राष्ट्रपति की व्यापारिक शक्तियाँ केवल आर्थिक नहीं, बल्कि कूटनीतिक उद्देश्यों के लिए भी आवश्यक हैं। उन्होंने दावा किया कि भारत और पाकिस्तान के बीच सीज़फायर स्थापित करने में व्यापारिक दबाव एक महत्वपूर्ण उपकरण था। यदि राष्ट्रपति की इन शक्तियों को सीमित किया गया, तो भविष्य में ऐसे कूटनीतिक प्रयास बाधित हो सकते हैं।

अदालत की प्रतिक्रिया

हालांकि, अदालत ने इस तर्क को स्वीकार नहीं किया। उसने स्पष्ट किया कि IEEPA के तहत राष्ट्रपति को व्यापक टैरिफ लगाने की शक्ति नहीं है, और इस प्रकार के कूटनीतिक तर्कों से कानूनी सीमाओं को नहीं लांघा जा सकता।

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निष्कर्ष

ट्रंप प्रशासन द्वारा भारत-पाकिस्तान सीज़फायर का ज़िक्र अदालत में एक रणनीतिक प्रयास था, जिससे राष्ट्रपति की व्यापारिक शक्तियों को व्यापक रूप से प्रस्तुत किया जा सके। हालांकि, अदालत ने इस तर्क को कानूनी रूप से अस्वीकार कर दिया, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि कूटनीतिक उद्देश्यों के लिए भी राष्ट्रपति की शक्तियाँ सीमित हैं। यह मामला अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, कूटनीति और कानूनी सीमाओं के बीच के जटिल संबंधों को उजागर करता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

1. ट्रंप के “लिबरेशन डे” टैरिफ क्या थे?

“लिबरेशन डे” टैरिफ राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा 2 अप्रैल 2025 को घोषित एक व्यापक टैरिफ योजना थी, जिसमें लगभग सभी आयातों पर न्यूनतम 10% और कुछ मामलों में 145% तक की दरें लागू की गईं।

2. अदालत ने इन टैरिफों को क्यों अवैध घोषित किया?

अदालत ने पाया कि ट्रंप ने IEEPA के तहत अपनी शक्तियों का अतिक्रमण किया है, क्योंकि यह अधिनियम राष्ट्रपति को व्यापक टैरिफ लगाने की अनुमति नहीं देता।

3. भारत-पाकिस्तान सीज़फायर में अमेरिका की क्या भूमिका थी?

अमेरिका ने दोनों देशों के बीच मध्यस्थता की, जिससे 10 मई 2025 को एक नाजुक सीज़फायर स्थापित हुआ।

4. ट्रंप प्रशासन ने अदालत में सीज़फायर का ज़िक्र क्यों किया?

ट्रंप प्रशासन ने तर्क दिया कि राष्ट्रपति की व्यापारिक शक्तियाँ कूटनीतिक उद्देश्यों के लिए आवश्यक हैं, जैसे कि भारत-पाकिस्तान के बीच सीज़फायर स्थापित करना।

5. क्या अदालत ने इस तर्क को स्वीकार किया?

नहीं, अदालत ने इस तर्क को अस्वीकार कर दिया और स्पष्ट किया कि राष्ट्रपति की शक्तियाँ कानूनी सीमाओं के भीतर ही रहनी चाहिए।

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